लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि।
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भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वकील, शिक्षक, समाज सुधारक लोकमान्य तिलक का स्वतंत्रता आन्दोलन में अतुलनीय योगदान है। लोकमान्य तिलक भारतीय संस्कृति व उसकी चेतना की आत्मा हैं। तिलक ने “स्वामी विवेकानन्द” जी को अपना राजनीतिक गुरु माना।
जन्म – 23 जुलाई 1856
जन्म स्थान – रत्नागिरी के चिखली गाँव में (महाराष्ट्र)
बचपन का नाम – ‘केशव’
पूरा नाम – लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
पिता का नाम – गंगाधर तिलक
विवाह – 1871 में सत्यभामा बाई से।
आन्दोलन – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
उपाधि – ‘लोकमान्य’ (लोगों के प्रिय/नायक)
समाचार पत्र – ‘द मराठा’, ‘केसरी’
मृत्यु – 1 अगस्त 1920 (महाराष्ट्र)
संगठन – भारतीय राष्टीय कांग्रेस, होमरुल लीग (1916,पूना)
लोकमान्य तिलक आधुनिक कालेज में शिक्षा पाने वाले पहले भारतीय पीढ़ी में से एक थे। तिलक किताबी कीड़े थे,तो वहीं शरीर को स्वस्थ व चुस्त रखने के लिए व्यायाम भी करते थे। लोकमान्य तिलक का अध्ययन असीमित था। उनके विचारों, कृतित्व में उनके गहन अध्ययन को साफ देखा जा सकता है। वह अस्पृश्यता के प्रबल विरोधी थे, उन्होने जाति और सम्प्रदायों में बंटे समाज को एक बनाने के लिए एक बड़ा जन आन्दोलन चलाया। वे अंग्रेजी शिक्षा को भारतीय सभ्यता का अनादर करने वाला मानते थे। अंग्रेजी शासन से डरे लोगों को बाहर निकालने और स्वाधीनता के लिए प्रेरित करने के लिए 1893 में “गणेश उत्सव” तथा 1895 में “शिवाजी उत्सव” की शुरुआत की जिससे राष्ट्रीय जागरण की लहर जाग उठी।
1896 में भयंकर अकाल पड़ा। तिलक ने भूखे किसानों को राहत पहुँचाने का काम अपने हाथ लिया। एक साल बाद 1897 में ‘प्लेग’ महामारी फैल गयी, पूना पर मृत्यु की विकराल छाया पड़ी। अंग्रेजो ने रेण्ड नामक पत्थर दिल अधिकारी को रोकथाम के लिए भेजा। उसने बहुत जुल्म किया। तिलक बिना डरे रोगियों की सेवा करते रहे, उन्होने प्लेग के रोगियों के लिए अस्पताल खोला और सरकार से उनका दुःख दर्द समझने का अनुरोध किये। परन्तु नौकरशाह जुल्म करते रहे। अतः 22 जून को रेण्ड जब गवर्मेंट हाउस से लौट रहा था तो मार कर जुल्म का बदला ले लिया गया। तिलक ने “केसरी” समाचार पत्र में अंग्रेजो के खिलाफ भयंकर गर्जना की। ऐसा करने की हिम्मत किसी में न थी। अतः अंग्रेजो ने इन्हें राजद्रोह पर सजा देते हुए 18 माह की कड़ी सजा सुनायी, तत्पश्चात् जेल से छूटते ही पुनः इन्होंने गर्जना की।
अपने मित्र गोपाल गणेश आगरकर के साथ मिलकर 1900 में “न्यू इंग्लिश पूना स्कूल” शुरू किया था। लोकमान्य तिलक ने 1906 के कांग्रेस अधिवेशन से स्वयं को गरम दल में शामिल कर लिया। गरम दल के प्रमुख नेता- लाल, बाल, पाल थे। 1908 में इन्हें पुनः 6 वर्ष की सजा,अंग्रेजो द्वारा इनका दमन करने के लिए दिया गया। इसी दौरान इन्होंने “गीता रहस्य” व “द आर्टिकल होम आॅफ वेदाज” लिखा।
जब ये वर्मा के माण्डले जेल में सजा काट रहे थे तभी इन्हें 1912 में पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला। 6 वर्षों बाद तिलक रिहा हुए, पूरा देश झूम उठा। 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में गरम दल, नरम दल तथा मुस्लिम लीग में समझौता हुआ जिसे “लखनऊ पैक्ट” के नाम से जाना जाता है। तिलक ने वहीं घोषणा की “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” 1918 में मानहानि का मुकदमा लड़ने इंग्लैण्ड गये। जब तिलक भारत लौटे तब उन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और देश का दौरा किया। जुलाई 1920 में तिलक बम्बई आये और हमेशा की तरह सरदार गृह में ठहरे। अन्ततः 1 अगस्त 1920 को, 65 वर्ष की आयु में तिलक युग का अन्त हुआ। उन्होंने अपने जीवन का क्षण-क्षण राष्ट्र को समर्पित किया। तिलक का मानना था कि जब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हो तब भक्ति और मोक्ष नहीं कर्मयोग की जरुरत होती है।