भारतीय संस्कृति प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। भारतीय संस्कृति ही एक मात्र ऐसी संस्कृति है जिसमें विभिन्न धर्मों, जातियों तथा परम्पराओं का समावेश है। इतनी अनोखी व विशालतम सभ्यता शायद ही विश्व में कहीं अन्य स्थान पर देखने को मिले। भारतीय संस्कृति ने हमें उदारता, प्रेम तथा सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया है। यहीं हमें विभिन्नता में एकता देखने को मिलती है। पूरे विश्व में हमारी सभ्यता को श्रेष्ठतम मानते हुए “जगदगुरु” की भी संज्ञा दी गई। हमें यह गौरव प्राप्त करने का अवसर समय-समय पर प्राप्त हुआ है। जिससे हमारी सभ्यता दिन प्रतिदिन निखर रही है। हमारी भारतीय संस्कृति ने प्राचीनकाल से ही “वसुधैव कुटुम्बकम्” की परंपरा का पालन किया है। “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। हमने सदैव भिन्न-भिन्न संस्कृतियों व सभ्यताओं को भारतीय संस्कृति में समाहित कर लिया अर्थात सभी परम्पराओं व सभ्यताओं को सम्मान दिया, उन्हें माना है। हमने “हम” को अपने जीवन का पूरक माना। “हम”- अर्थात हम सभी, “मैं” – अर्थात अहम् का त्याग किया।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की परम्परा का पालन करते हुए हमारे माननीय प्रधानमंत्री “श्री नरेन्द्र मोदी जी” ने कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय विश्व के कई देशों को हाइड्राॅक्सीक्लोरोक्वीन नामक अति आवश्यक दवा भेजकर सराहनीय कार्य किया है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने “वसुधैव कुटुम्बकम्” की परम्परा को जीवन्त कर दिया है। वैश्विक महामारी के समय जब भारत स्वयं विकट परिस्थिति का सामना कर रहा है, इस समय भी हमें विश्व के अन्य लोगों की चिन्ता हमारी सभ्यता को दर्शाता है। हम अमेरिका जैसे महाशक्ति को दवा भेज रहे हैं, तो वहीं अन्य देशों स्पेन, जर्मनी, ब्राजील, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान को भी भेज रहे हैं तथा आगे भी अन्य देशों को दवा भेजने की योजना है। हम सभी भारत के लोग जिस प्रकार इस वैश्विक महामारी का सूझ-बुझ के साथ सामना कर रहे हैं इसका श्रेय हमारी वर्तमान सरकार, मेडिकल स्टाॅफ, डाॅक्टर, तथा पुलिस प्रशासन को मिलना चाहिए। हमारे आस-पास भी वालंटियर/ स्वयंसेवक द्वारा प्रतिदिन सराहनीय कार्य किया जा रहा है, जिसे देखकर अपनी सभ्यता पर गर्व होता है।