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Home/संस्कृति/‘सनातन धर्म’ विज्ञान से कम नहीं
संस्कृति

‘सनातन धर्म’ विज्ञान से कम नहीं

Bhanu
August 4, 2020
Religion or science

सम्पूर्ण संसार का सबसे पुराना धर्म ‘सनातन धर्म‘ है। सनातन धर्म सिर्फ एक धर्म ही नहीं अपितु एक संस्कृति है, क्योंकि सनातन धर्म अपने में सभी को समाहित कर लेता है और अपने आप को विशाल कर मानव कल्याण में योगदान देता है। सनातन धर्म “वसुधैव कुटुम्बकम्“और सबका साथ सबका विकास की अवधारणा को अंगीकृत करता है। सनातन धर्म पूर्ण रुप से वैज्ञानिकता पर आधारित है। आज का विज्ञान भी हमारे हिन्दू धर्म के सामने नतमस्तक होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से करोड़ो वर्ष पहले ही विज्ञान से बहुत ही आगे का सोच रखा था। उन्होंने विज्ञान की कल्पना तब की थी जब सम्पूर्ण विश्व में किसी को आग या अन्य आधुनिक आवश्यकताओं के बारे में पता नहीं था। अगर हम आज के कोरोना संकट के बारे में बात करें तो आज सभी वैज्ञानिक शोधों से जो भी जानकारियाँ मिल रही हैं उनकी पुष्टि कर उनको आज से लाखों करोड़ो वर्ष पहले ही हमारे सनातन धर्म ने अंगीकार कर लिया था। कोरोना में हम सभी हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहे हैं तथा हाथ मिलाने से बच रहे हैं जो कि हमारी संस्कृति में पहले से ही नमस्ते करना शामिल था। बीच में हम सभी ने पाश्चात्य संस्कृति में पड़कर नमस्ते करना छोड़ हाथ मिलाना प्रारम्भ कर दिया था।

प्रथाएं जिनकी परिभाषा शायद हमने आज समझी:

हमारे सनातन धर्म में मृत शरीरों को जलाने की प्रथा है। आज के कोरोना संकट में सम्पूर्ण विश्व मृत शरीरों को जला रहा है क्योंकि जला देने से सभी कीटाणु जलकर मर जाते हैं। आज के वैज्ञानिक भी शवों को जलाने की सलाह दे रहे हैं। हिन्दू धर्म में जिस किसी के भी घर अगर मृत्यु हो गयी है तो उनसे 14 दिन की दूरी बनाकर रहते थे तथा उनके घर जाते भी थे तो दूर रहकर उनसे बात करते थे जो कि सनातन धर्म में सदियों से चला आ रहा है। आज के कोरोना संकट में भी प्रमुख बचाव सामाजिक दूरी है। आज वैज्ञानिक भी दूरी अपनाने की सलाह दे रहे हैं तथा संक्रमित व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारंटीन कर रहे हैं। हमारे पूर्वज जानते थे कि अगर व्यक्ति की मृत्यु किसी संक्रमित बीमारी से हुई है तो वह अन्य लोगों में भी फैल सकता है। जिसे रोकने के लिए उन्होंने 14 दिन का सूतक विधान व सामाजिक दूरी को अपनाया था।

दैनिक जीवन शैली और सही खान पान का महत्व:

हमारे सनातन धर्म में योग, आयुर्वेद व शाकाहार का बहुत महत्व है। आज के कोरोना संकट में भी सम्पूर्ण विश्व योग, आयुर्वेद व शाकाहार की तरफ देख रहा है। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि नियमित योग करने वाले लोग आयुर्वेदिक वस्तुओं व शाकाहार का सेवन करने वाले लोगों को में कोरोना संक्रमण का प्रभाव बहुत कम है। आज सम्पूर्ण विश्व योग पर बल दे रहा है जो कि मानवजाति को हमारे पूर्वजों की अमूल्य देन है। आज वैज्ञानिक भी सभी को काढ़ा पीने व गिलोय का सेवन करने को कह रहे हैं जो कि हमारे यहाँ सदियों से चला आ रहा है। गिलोय को सनातन धर्म में अमृत कहा गया है, क्योंकि गिलोय की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुआ था। कोरोना से लड़ने के लिए हमारा रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होना चाहिए और रोग प्रतिरोधक क्षमता को सबसे ज्यादा मजबूत गिलोय ही बनाता है।

स्वच्छता का महत्व हमें आज समझ में आ रहा है:

सनातन संस्कृति में सदियों से स्वच्छता पर बल दिया गया है। यहाँ खाना खाने से पहले व बाद में हाँथ धोने की परम्परा है तथा भोजन बनाने से पहले सम्पूर्ण साफ-सफाई व स्नान का विधान रहा है,क्योंकि स्वच्छता से सभी कीटाणु मर जाते हैं। आज W.H.O. भी स्वच्छता पर जोर दे रहा है। अगर कोरोना को हराना है तो हमें नियमित साफ-सफाई व हांथ धोना होगा।

पूजा पद्धति से वायरस का नाश:

सनातन धर्म में पूजा-पाठ में धूपबत्ती, कपूर, लोहबान का प्रयोग होता है। इसके प्रयोग से भी वायरस का नाश होता है, जिसकी पुष्टि आज वैज्ञानिक भी करते हैं। सनातन धर्म के पूजा पद्धति में शंख और घण्टे का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि इनके बजने से जो ध्वनि निकलती है वह कीटाणुओं का नाश करती है और हमें एक सकारात्मक ऊर्जा देती है। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने भी कोरोना संकट में घण्टी व शंख बजाने को कहा था।
आज अगर सम्पूर्ण विश्व सनातन धर्म के इन सभी बातों को मान ले और हम अपने पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलें तो निश्चित ही कोरोना संकट को हराकर विश्व को एक स्वस्थ माहौल दे सकते हैं।

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