हमें तो हमेशा से जंगल ही चाहिए थे, कोयला नहीं क्यों की अगर घने जंगल काट कर एक बार कोयला निकल भी लिये तो जो लाभ होगा वो तो तात्कालिक ही होगा,लेकिन अगर जंगल रहे तो हमे वो सालो साल बस लाभ ही लाभ देंगे।
जैसे ताजी हवा,साफ़ पानी के जलाशय,जानवरो के प्राकृतिक बसेरे और साथ ही आदिवाशियों के ठिकाने ख़त्म हो जायेंगे। ये सब बस एक ईंधन के साधन के लिये,ठीक नहीं है,हमारे बुद्धि जीवियों को सामने आकर सरकार का ध्यान इस तरह खींचना चाहिये।
हम सब देख ही रहे है की आये दिन कई तरह के प्रदूषण का हमें सामना करना पड़ रहा है, और अगर इसी प्रकार हम अपनी अमूल्य प्रकृति सम्पदा का दोहन करते रहे तो एक समय कुछ भी स्वच्छ नहीं होगा। ये सब होगा तो लेकिन हम इनका उपयोग नहीं कर पायेंगे।
मुझे तो ये समझ में नहीं आता की हम कब ये समझेंगे की ये सब है तब ही तो हम हैं,अगर प्रकृति नहीं तो हम भी नहीं। केवल विकास, लेकिन किसका। ७० साल हो गये, हमारी आजादी को लेकिन आज भी हम सबकी विकास की बाते होती रही, लेकिन विकास हुआ क्या, आज भी लोग सरकारी तंत्र से त्रस्त हैं। हा ये अब कह सकते है की मोदी जी के आने के बाद कई चीजों में सु]धार तो हुआ है,लेकिन पूर्ण रूप से नहीं।कई चीजों में अभी सुधार करना बाकी है, लॉकडाउन के बाद प्रकृति ने खुद को काफी हद तक साफ कर लिया है, और अब हमरी जिम्मेदारी है की हम इसकी सुंदरता बनाये रखे, क्यों की हमने ही तो इसके साथ छेड़छाड़ की है।
Superb