आजकल बहुत कुछ बदल गया है, जैसे चाहे आप दैनिक जीवन शैली की बात करें, चाहे वह बच्चों के खेलने का तरीका हो, खरीदारी का तरीका हो, समय के साथ सब कुछ बदल रहा हैं। 90 के दशक में बच्चों के पास बहुत अच्छा समय था, बच्चे एक दोस्त के घर पर इकट्ठा हो कर एक-दूसरे के साथ घंटों तक अलग-अलग तरह के गेम्स खेलते रहते थे। एक साथ टेलीविज़न पर वीडियो गेम खेलना, आउट हाउस गेम्स, एक साथ बिना गैजेट्स के पढ़ाई करना। ऐसा अद्भुत समय था वो।
सोशल मीडिया पर/परिवार के साथ समय बिताना:
इस पीढ़ी के बच्चे ज्यादातर अपना समय social sites पर बिताना पसंद करते हैं, हर छोटी और बड़ी जानकारी बच्चे अपने social sites पर अपलोड करते हैं। और जबकि 90 के दशक के बच्चे परिवार के साथ अपना समय बिताना पसंद करते थे, उनकी समस्याओं के बारें में उनके परिवार को पहले से ही पता होता था। हम social media को गलत नहीं कह रहे हैं, बल्कि यह कह रहे हैं कि social media पर सब कुछ साझा करना सही नहीं है।
सोशल मीडिया Friends/Real Friends:
कुछ बातें होती हैं जिन्हे हम अपने दोस्तों से भी share नहीं कर सकते जो Real life में हैं, लेकिन वही बात हम Social media freind से आसानी से share कर सकते हैं। ऐसे टाइम में social media अच्छा भी हैं, की हम बिना किसी डर और संकोच के अपनी बात किसी से share कर सकते हैं।
लेकिन Real life freind जो आपके साथ outdoor गेम्स खेलेंगे, वो भी बहुत जरुरी हैं आपके लिये। इसलिये उनके साथ खेलिये और अपनी बच्पन की खट्टी-मीठी यादें बनाइये।
किताबें/Kindle Books:
आज का जो समय हैं उसमें पुस्तकों की जगह अब Kindle- Books ने ले लिया हैं, किताबें धीरे-धीरे गायब होने लगी हैं। और उसी के साथ गायब होने लगा हैं उनको हाथ में लेकर कहानी के साथ दृष्टि की यात्रा, ये वो यात्रा है जब हम किताब पढ़ते हुये उन चीजों की परिकल्पना करते हैं जो किताबें कहती हैं।
लेकिन प्रौद्योगिकी तेजी से इन्हें kindle और ऑडियोबुक में बदल रही है। तो शायद ये अनुभूति हमें जो आज हो रही हैं वो भविष्य में दूर की बात हो जायें।
आज की जो तकनीक है, वो अभी भी इतनी modern नहीं हुई की हमारी Virtual-life को Real-लाइफ में बदल सकें। और अगर ऐसा नहीं हो सकता तो फिर हम इसके पीछे क्यों भाग रहे हैं।
आज कल के जो बच्चे हैं उन्हें ये virtual-world बहुत पसंद आता हैं। लेकिन ये virtual दुनिया उन्हें बांध रही हैं, ये virtual के चक्कर में जो वास्तविक या Real दुनिया हैं उसका आन्नद ये नहीं ले पा रहें हैं।
Parents को बच्चों के लिये थोड़ी अधिक मेहनत करनी होगी, उन्हें समझाना होगा की सच्चाई क्या हैं। Real और Virtual क्या हैं, इन्हें इनकी आदत में डालना पड़ेगा जिससे इन्हें भली-भांति पता हो कि वास्तविक जीवन कितना महत्वपूर्ण हैं।