रविदास जी का शुरुआती जीवन:
हिंदू कलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा को रविदास जयंती मनाई जाती हैं जो की इस वर्ष 27 फरवरी 2021 को संत रविदास जयंती मनाई जा रही हैं। माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म सन् 1398 को उत्तर प्रदेश काशी में हुआ था, उनकी माता का नाम कला देवी और पिता का नाम श्री संतोख सिंह जी था। वैसे तो रवीदास जी जाति पात पर विश्वास नहीं रखते थे लेकिन लोगों द्वारा बताया जाता है हो की वे जाति से चमार थे संत जी बचपन से इतने दयाल थे की उस समय भी वह अपने व्यवसाय से जितना कमाते थे वह धन वो जन कल्याण के लिए खर्च कर देते थे।
रविदास जी की शिक्षा:
संत रविदास जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा के लिए अपने गुरु pt. गुरु शारदा नंद की पाठशाला में पड़ने के लिए गए थे, लेकिन कुछ टाइम के बाद उच्च जातियों ने विरोध किया की वह चमार के बच्चे के साथ नही पड़ेंगे लेकिन pt. गुरु शारदा नंद ने मेहसूस किया की रविदास एक बालक है उसे पड़ने का हक है। इसलिए उन्होने रविदास जी को शिक्षा देने का फैसला लिया। कुछ ही टाइम में रविदास जी और pt. का बेटा आपस में अच्छे मित्र बन गए थे। एक बार खेलते दोनो साथ खेल रहे थे लुकाछिपी खेल रहे थे तो खेलते उन्हे शाम हो गई थी रविदास जी ने अपने मित्र से कहा कि अभी शाम हो गई है इसलिए हम अपना कल सुबह को दुबारा से यही से शुरुआत करेंगे। अगली सुबह जब रविदास मैदान में पहुंच गए और काफी देर तक अपने मित्र को ना पा कर वो गुरु शारदा नंद के घर चले गए वहा जाकर उन्होंने देखा कि काफी भीड़ थी और अब विलाप कर रहे थे। रविदास जी अपने गुरु के पास जा कर बैठ गए जो अपने पुत्र के पास बैठे हुए थे वहां जाकर उन्होंने किसी को कुछ नहीं बोला बल्कि अपने मित्र के कान में बोला की “ मित्र ये सोने का वक्त नहीं है उठो हमें खेलने जाना है” इतना सुनते ही उनका मित्र उठ गए ये नज़ारा देकर वहा पर उपस्थित लोग हैरान हो गए।
रविदास जी का विवाह:
रविदास जी को सामाजिक और धर्म के कार्य में ज्यादा रुचि होने के कारण उनके माता पिता को उनके वैवाहिक जीवन की चिंता होने लगी अपने माता पिता की चिंता को देखते हुए उन्होंने अपने पिता के व्यवसाय में शामिल हो गए और शादी करने का फैसला ले लिया उन्होंने लूना देवी के साथ विवाह कर लिया और कुछ देर बाद उनके यहां बेटा हुआ जिसका नाम विजयदास रखा गया।
शादी के उपरांत भी वह सामाजिक और धार्मिक कार्यों में रुचि रखते थे जिस करना वह अच्छे से व्यवसाय पीआर ध्यान नहीं दे पाते थे। ऐसे में उन्होंने अपने पिता से अलग रहने का फैसला लिया और अपने घर के पिछवाड़े में जाकर रहने लगे जहां से वह सामाजिक कार्य पर ध्यान देने लगे।
सिख धर्म में योगदान:
उनके पद्य, भक्ति गीत, और अन्य लेखन (लगभग 41 छंद) सिख धर्मग्रंथों में वर्णित हैं, गुरु ग्रंथ साहिब जिन्हें 5 वें सिख गुरु, अर्जन देव द्वारा संकलित किया गया था। गुरु रविदास जी की शिक्षाओं के अनुयायियों को आमतौर पर रविदासिया कहा जाता है और शिक्षाओं का एक संग्रह जिसे रविदासिया पंथ कहा जाता है।
गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किए गए उनके 41 पवित्र ग्रंथ निम्नलिखित हैं: “राग – सिरी (1), गौरी (5), आसा (6), गुजरी (1), सोरठ (7), धनसारी (3), जैतसारी (1), सुही (3), बिलावल (2), गौंड (2), रामकली (1), मारू (2), केदार (1), भैरू (1), बसंत (1), और मल्हार (3)।
मीरा बाई का साथ:
राजस्थान की कवयित्री और कृष्ण भक्त मीरा का रविदास से मुलाकात का कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण तो नहीं मिलता है, लेकिन कहते हैं मीरा के गुरु रविदासजी ही थे। कहते हैं संत रविदास ने कई बार मीराबाई की जान बचाई थी।
रविदास जी की कविताएं:
संत रविदास जी के द्वारा लिखी गई कुछ चुनिंदा एवम् लोकप्रिय कविताएं:
(1) दरसन दीजै राम…
दरसन दीजै राम दरसन दीजै।
दरसन दीजै हो बिलंब न कीजै।। टेक।।दरसन तोरा जीवनि मोरा,
बिन दरसन का जीवै हो चकोरा।।1।।माधौ सतगुर सब जग चेला,
इब कै बिछुरै मिलन दुहेला।।2।।तन धन जोबन झूठी आसा,
सति सति भाखै जन रैदासा।।3।।
(2) कह रैदास…
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
(2) जाति-जाति…
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात