आज हर किसी के अंदर, एक डर घर सा कर गया। वो डर अपने लिए नहीं अपनों के लियें हैं आज-कल। कुछ लोग इस डर से पास आ गये हैं, तो कुछ के मन्न में ईष्या घर कर गई हैं। लेकिन अगर औसतन देखा जायें तो लोग करीब आ रहे हैं। क्योंकि अगर बड़ी लड़ाई लड़नी हैं तो लोगों का साथ तो चाहिये ही। अगर मिल के लडे तो लड़ाई जल्दी ख़त्म होगी।
लोग कह रहे हैं की मृत्यु का अनुपात कम हैं,लेकिन उनका क्या जिनके घर वालो के साथ ये हो रहा हैं , उनके लियें तो ये अनुपात सही नहीं हैं। मेरे ख्याल से तो नहीं बस ये ही डर हम सबके मन्न में हैं। ये डर तो लगता हैं वैक्सीन आने के बाद ही ख़त्म होगा। आज कल ऐसा लगता हैं जैसे हम सब एक प्रयलय का सामना कर रहे हैं, एक बड़ी सी नाँव पर बैठ कर और हर रोज बस टकटकी लगा कर वैक्सीन रूपी जमीन को तलाशते रहते हैं।
हर रोज कोई एक, जैसे पंछी रूपी समाचर देता हैं की इस कम्पनी ने दवा पे दावा किया, और अगले दिन उस दवा का कुछ पता नहीं। अब तो पर परीक्षण शुरू भी हो गये। देखते हैं, इस होड़ में कौन विजेता होगा।
स्वास्थ्य प्रणाली की खराब स्थिति:
इसका आभास तो आप सबको होगा ही, सरकारी हॉस्पिटल का डर हर किसी के अंदर होता हैं, क्योकि वहाँ सब कुछ होते हुये भी कुछ नहीं होता। आये दिन सुनने को मिलता हैं , की कोरोना वॉर्ड में किसी की लाश पड़ी हैं कोई उठाने वाला नहीं। ऐसी कितनी ही बाते आप सब लगातार संचार के मध्यम से सुनते होंगे। ये मैं भी जानना चाहता हूँ की भाई जब इलाज कर ही नहीं सकते हो तो, हॉस्पिटल में क्यों लाते हो। किसी के घर का कोई कोरोना +VE हो जाये तो कोई उससे मिल भी ना पाये। अरे सामने से नहीं मिल सकता तो कम से कम vedio call पे बात करा दो। कुछ तो +VE हो कोविद +VE मरीजों के साथ, हो सकता हैं ये सब होने के बाद अनुपात ठीक होने वालो का और बढ़ जायें। उनके अंदर के इस डर को ख़त्म कर दे तो कोरोना अपने आप ख़त्म हो जायेगा।
अनदेखा डर:
ये कब किसको अपनी गिरफ्त में ले लेगा कोई नहीं जनता, पता हैं इस डर से आप तब तक नहीं डरते जब तक ये आप तक न पहुँच जायें, उससे पहले तो हम सोचते हैं की नहीं ये हमें नहीं हो सकता। उसके साथ एक और चीज हैं, की इतना खौफ भर गया हैं अंदर हमारे की अगर गलती से भी एक छींक आ जाये तो हम सहम से जाते हैं। ये डर क्या सही हैं।
इतना डरने से अच्छा हैं, की हम घर से बीना जरूरत के बहार ही ना निकले। निकलना भी पडे तो एक प्रॉपर तरीके से निकले।