मुंशी प्रेमचन्द्र की जयन्ती पर उन्हें शत् शत् नमन?
भारतीय साहित्य के प्रतिभाशाली, ओजस्वी व बहुमुखी प्रतिभा के धनी उपन्यास सम्राट “मुंशी प्रेमचन्द्र” जी के नाम के बिना साहित्य की चर्चा अधूरी है। मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने एक गरीब परिवार से आने के बाद भी देश की आजादी के लिए गांधी जी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी। उन्होंने सरल भाषा का प्रयोग कर अपने प्रगतिशील विचारों को जन-जन तक पहुँचाया। उनके यथार्थवादी व आमजन के जीवन पर आधारित लेखन ने उन्हें अमर बना दिया।
मुंशी प्रेमचन्द्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायब राय था, जो लमही में डाकमुंशी थे। सात वर्ष की आयु में माता व सोलह वर्ष की आयु में पिता का स्वर्गवास हो गया। अतः इनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय रहा। इनका विवाह शिवरानी देवी से हुआ। 1898 में मैट्रिक व 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास से इंटर किया। 1919 में बी०ए० पास किया।
मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने साहित्यिक जीवन की शुरुआत 1901 से किया। 1908 में प्रेमचन्द्र जी की पहली कहानी संग्रह “सोजे वतन” प्रकाशित हुआ। इसमें पाँच देशभक्ति से ओतप्रोत कहानियों का संग्रह था। “सोजे वतन” अर्थात “देश की पीड़ा।” इस संग्रह को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित कर सभी प्रतियां जब्त कर ली। आरम्भ में मुंशी प्रेमचन्द्र “नवाब राय” नाम से उर्दू में लिखते थे।अंग्रेजो ने लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। अतः तत्पश्चात् उन्होने “प्रेमचन्द्र” नाम से लिखना प्रारम्भ किया। उन्होने हिन्दी समाचार पत्र “जागरण” तथा साहित्यिक पत्रिका “हंस” का संपादन व प्रकाशन किया। मुंशी प्रेमचन्द्र ने “सरस्वती प्रेस” खरीदा, जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा।
मुंशी प्रेमचन्द्र जी की रचनाएं:
रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मल, गबन, गोदान, प्रतिज्ञा, सप्तरोज, नवनिधि, प्रेम-पूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम-प्रतिमा, प्रेम-द्वादशी, समरयात्रा, मानसरोवर, संग्राम, कफन, पूस की रात, पंच-परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलो की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखी। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचन्द्र का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक – सांस्कृतिक दस्तावेज है।
मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने दहेज, लगान, छुआछूत, विधवा-विवाह, पराधीनता, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का सुन्दर चित्रण किया है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के समय को “प्रेमचन्द्र युग” कहा जाता है। 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी के आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। अन्ततः उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।