एक प्यारी सी मुस्कान, चेहरे पर तेज, आत्मविश्वास से भरा, आज्ञाकारी बच्चा आदित्य।
मैं उससे विद्यालय में ट्रेनिंग के समय मिली। काॅलेज से समूहों में बांटकर अलग-अलग विद्यालयों में टीचर ट्रेनिंग के लिए हमें भेजा गया था। आदित्य तीसरी कक्षा में था। एक शिक्षिका के रूप में बच्चों को पढ़ाने में हमें अत्यन्त खुशी का अनुभव हो रहा था,प्रतिदिन कुछ नया सीखना और बच्चों को सिखाना। मैं जब पहली बार आदित्य की कक्षा में गयी तो उसके अच्छे बच्चे वाले व्यवहार व जिज्ञासु स्वभाव को देखकर भाव विभोर हो गयी। एक महीने की ट्रेनिंग कब बीत गयी पता ही नहीं चला। बच्चों के लिए कला, सुलेख, प्रश्नमंच आदि प्रतियोगिता के आयोजन द्वारा जहाँ उन्हें सीखने का अवसर मिला, तो वहीं हमलोगों ने भी बहुत कुछ सीखा। उस विद्यालय की प्रधानाचार्या व अन्य अध्यापकगण से भी हमें नई-नई जानकारियाँ प्राप्त हुई। जब वापस कॉलेज जाने का समय आया तो हमने जाते-जाते बच्चों के लिए एक समारोह का आयोजन किया। बच्चों ने गाना गाया, नृत्य व नाटक मंचन भी किया। फिर हम सब ने मिलकर उन्हें पुरस्कृत भी किया।
शिक्षक के लिए सभी विद्यार्थी एक समान होते हैं, लेकिन जैसे बच्चों के प्रिय शिक्षक होते हैं वैसे ही शिक्षकों के भी प्रिय विद्यार्थी होते हैं। आदित्य से परिवार के बारे में पूछने पर उसने बताया था कि उसकी माँ नहीं है, पिताजी हैं। पर वो अपने नानी के घर पर रहकर पढ़ाई करता था। पढ़ने में उसकी रुचि थी साथ ही वह स्वभाव से जिज्ञासु प्रवृत्ति का था। वह समय पर अपने सभी कार्य पूरा कर लेता था। आदित्य के इसी स्वभाव के कारण मुझे उससे अत्यधिक लगाव हो गया था, या कह सकते हैं कि वह मेरा प्रिय छात्र था।
ट्रेनिंग के आखिरी दिन हम सभी बच्चों की आँखों में आंसू देख भावुक हो गये थे। आदित्य ने रोते हुए कहा- मैम मत जाइये! उसे रोता देख मेरी आँखों में भी आंसू आ गये। मैंने कहा,रोना बन्द करो आदित्य। ट्रेनिंग भले ही पूरी हो गयी है पर मैं हमेशा आती रहूंगी। उसको अंदाजा था कि मैं उसका मन रखने के लिए कह रही हूँ तभी उसने दोहराया मत जाइये मैम, मुझे पता है आप नहीं आयेंगी। मैने कहा-मैं जरूर आऊंगी चुप हो जाओ। उसके अगले ही दिन से कॉलेज शुरू हो गया। प्रतिदिन काॅलेज जाना अपने प्रोजेक्ट और अन्य कार्यों को करने के कारण मैं विद्यालय जा ही नहीं पायी। एक बार जाना हुआ भी तो उस दिन आदित्य विद्यालय नहीं आया था, तो बाकी सभी बच्चों से मिलकर आ गयी। मैं उसे भूली तो नहीं थी पर दुबारा जाना सम्भव ना हो सका। प्रथम सेमेस्टर के बाद सीधा चतुर्थ सेमेस्टर में हमें पुनः उसी विद्यालय में ट्रेनिंग के लिए जाना था। मैं बहुत खुश थी और यही सोच रही थी कि आदित्य तो अब चौथी कक्षा में होगा। विद्यालय में पहुंचकर प्रधानाचार्या जी से मिलने के बाद मैं सीधे आदित्य की कक्षा में गयी पर मुझे वो नहीं दिखा। मैंने ध्यान से देखा तो उसका एक मित्र दिखा, वो दोनों हमेशा एक साथ रहते थे और पक्के मित्र थे। उससे पूछने पर पता चला कि आदित्य ने विद्यालय छोड़ दिया। कारण पूछने पर उसने बताया कि आप लोगों के जाने के बाद उसने विद्यालय आना कम कर दिया था, एकदम चुपचाप रहने लगा था और अगली कक्षा में प्रवेश भी नहीं कराया। मुझे आत्मग्लानि हो रही थी, फिर लगा कि मैं ज्यादा सोच रही हूँ। शायद वह अपने पिताजी के घर चला गया होगा और मन ही मन भगवान से प्रार्थना की वो जहाँ भी हो हमेशा खुश रहे।
Very nice story
Good
Very good