इसे क्या कहे, आप ही बताओ। ये नेपोटिस्म आज हर जगह अपनी जड़े जमा रहा हैं, ख़ास कर राजनीति और बॉलीवुड में।आज कल बॉलीवुड में हीरो बनना वैसे ही है, जैसे कुछ टाइम पहले राजनीती में CM या PM बनना था। मतलब खानदानी परंपरा, आज भी राजनीती इससे अलग नहीं हो पाई हैं, और शायद कभी हो भी न पायें। कुछ पार्टियों में ये बदलाव आ तो रहा है, लेकिन उतनी ईमानदारी से नहीं। जब कोई भी प्रोफेशन अगर बाप के बाद बेटा ही सभांलने लगेगा तो और लोग क्या करेंगे। हो सकता है कई लोग हो जो इस काम को इन लोगो से बेहतर ढंग से करते, उन्हें कब मौक़ा मिलेगा, या बस वो इंतजार ही करेंगे।
कितने अवसर मिलते है:
बाहरी लोगों को फिल्म हो या राजनीति बहुत ही कम अवसर मिलते हैं, कुछ लोग ही है जिन्हे अवसर मिलते है, वो भी बहुत मुश्किल से।
लेकिन जो अंदर के लोग है, मतलब जो इस दुनिया से किसी भी तरह का नेपोटिस्म टाइप का रिलेशन है तो आप के लिए सब कुछ आसान हैं। भले ही आप को कुछ आता हो या न हो। बस यही है, पुरे सिस्टम को ख़राब करने की जड़ है। कब तक भाई-भतीजावाद हम करेंगे। इन सब के चक्कर में जो हकदार है, टैलेंटेड है वो सब बेकार हो रहे है।
कलाकार Vs हीरो :
बॉलीवुड ने कई कलाकार दिये है, मैं हीरो की बात नहीं कर रहा आर्टिस्ट की बात कर रहा हूँ। क्योंकि हीरो बनना तो बहुत ही आसान है, लेकिन कलाकार बन कर किसी स्टोरी को जीवंत बना देना बहुत मुश्किल हैं। जो कहानी को जीवंत बना दे वो कलाकार है।
ऐसे ही कलाकारों में “सुशांत सिंह राजपूत” भी एक थे, जिसने म.स.धोनी में जो धोनी की भूमिका निभाई शायद ही कोई दूसरा कर सकता था। वो इस नेपोटिस्म का शिकार हुये। और क्या विडंबना है की उनकी डेथ कैसे हुई, ये भी सही से कोई नहीं बता सकता। सीबीआई जांच की बात कर रहे कई लोग तो सरकार करा क्यों नहीं देती , किसको बचाना है, यहाँ कोई मर जाये तो उसको इंसाफ मिलना भी कितना मुश्किल है, देखते है कब सच्च सामने आता है। लेकिन इसमें जनता ने बहुत साथ दिया पता है क्यों, क्योंकि ये जनता सुशांत में अपना अक्स देखती है, क्योंकि सब चाहते है, आगे बढ़ना कुछ नया करना, लेकिन चांस बहुत काम को ही मिलता है। सुशांत उनमे से एक थे, जो आगे बढ़ने के साथ ही, जमीं से जुड़े हुए थे। क्योंकि उन्होंने ऐसा सफर तय किया था , सफलता उन्हें एक दिन में नहीं मिली, उन्होंने इसके लिये मेहनत की थी।लोग भी ऐसा ही रास्ता अपनाते है, जिन्हे फिल्मो में आना है। ये रोल मॉडल थे, युवा पीढ़ी के लियें।
गलती किसकी:
शायद हम सब की गलती है, क्योंकि हमने तो ही इन्हें स्टार बनाया हैं। और अब हमें ही अपनी गलती सुधारनी होगी। क्यों बड़े हीरो की फिल्म की कहानी बकवास होने के बाद भी हिट हो जाती हैं। और छोटे कलाकार जिन्होंने उम्दा अभिनय किया हो फिल्म में कहानी भी अच्छी हो फिल्म फ्लॉप या औसत ही रह जाती हैं। हमें ये अपनी प्रवृत्ति बदलनी होगी,अगर बदलाव कहीं भी सही दिशा में चाहिये, तो उसे सही दिशा की तरफ कम से कम एक कदम तो चलना होगा।
आज एक अवसर मिल रहा हैं आपको सही दिशा में कदम बढ़ाने का, वो कलाकार आज नहीं रहा लेकिन उसकी आखरी फिल्म को यादगार तो बना ही सकते हैं हम सब। “दिल बेचारा” लॉन्च हो रही हैं, हम सबको साथ मिलकर इसे एक ऐतिहासिक फिल्म बना देनी है। ये हमें अपने लिए करना हैं , क्योंकि वो हमारा अपना था।